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मार्च, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

।। अभिलाषा ।।

अभिलाषाएँ            ...चुप तिरती और तैरती हैं । कभी संवेदनाओं की झील में कभी विचारों की नदी में प्रकृति से ग्रहण करती हैं इच्छाएँ कभी          सजलता          तरलता          सजगता अभिलाषाएँ          चुप रहती हैं अपने को शब्द में रूपांतरण से पहले प्रेम में प्रेम की तरह

।। तुम हो मुझमें ।।

शब्द में अर्थ की तरह तुम हो मुझमें        सुख में        खुशी की तरह ।        उजाले में        चमक की तरह ।        सन्नाटे में        चुप्पी की तरह ।        शांति में        मौन की तरह ।        पर्वतों में        ऊँचाई की तरह ।        सागर में        गहराई की तरह ।        पानी में        नमी की तरह । प्रेम में प्रेम की तरह तुम हो मुझमें ।

।। तुम्हारे जाने के बाद ।।

तुम्हारे जाने के बाद छूट जाता है तुम्हारा जीना मुझमें एक पूरी जीवंत ऋतु की तरह हम दोनों एक दूसरे को जी लेते हैं अपनी प्रसुप्त पाँखे खोल प्रणय प्रसूति हेतु तुम्हारे जाने के बाद आँखों के आँचल की खूँट में खिला-महकता बसंत आस्था के अक्षत की तरह छूट जाता है बचा हुआ बँधा रहता है पवित्र संकल्प-सा तुम्हारे जाने के बाद सम्पूर्ण पृथ्वी पर रची हुई दिखती है प्रणय के बसंत की कान्तिमान रंगत स्मृतियों की जड़ों में रस-रंग घोलती तुम्हारे अधबोले शब्द शब्दों के अंत का सिहरता गुलाबी मौन करता है पृथ्वी पर अपने होने की सृष्टि अवतरित होता है अबुझ ...गतिशील नक्षत्र लोक पसरता है प्रणय-उजास का अमिट प्रकाश मन-धरती की दरारों को अपनी रोशनी से भरता तुम्हारे जाने के बाद कर्ण-गठरी कि मन-गठरी में रखे गए तुम्हारे शब्द मेरे प्राण धरोहर मृत को जीवंत निष्प्राण को प्राणवान अपने शब्दों की जिजीविषा से देते हो प्राण प्रणय की ...प्रणय प्रतीक्षा के लिए संजीवनी शक्ति तुम्हारे जाने के बाद मेरी देह में नहीं बचते हैं पाँव मेरी आँखों को नहीं सूझता है कुछ तुम्हारी अनुपस्थिति में रिस कर तैरन

'शैल प्रतिमाओं से' की कुछ कविताएँ

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कानपुर में जन्मी, बनारस में पढ़ने और पढ़ाने वाली और नीदरलैंड में 'हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन' के निदेशक के रूप में हिंदी के पठन-पाठन की जिम्मेदारी निभा रहीं बहुमुखी प्रतिभा की धनी पुष्पिता अवस्थी का 'शैल प्रतिमाओं से' शीर्षक एक अनोखा कविता संग्रह है, जिसमें उनकी हिंदी में लिखी कविताओं के साथ अंग्रेजी और डच में हुए अनुवाद भी साथ-साथ प्रकाशित हुए हैं ।  इस संग्रह ने पुष्पिता जी की कविता की पहचान को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप दिया है । पुष्पिता जी की कविता का मुख्य स्वर प्रेम है । मौजूदा समय के घमासान में जहाँ सौन्दर्य-बोध के स्रोत तेजी से सूखते जा रहे हैं; जहाँ प्रेम को एकदम निजी अनुभूति मानकर व्यापक दृश्य से अलग किया जा रहा है या उसे निर्वासित करने की चेष्टा की जा रही है वहाँ प्रेम के लिए जगह तलाश कर उसे बचाए रखने का एक जरूरी हस्तक्षेप पुष्पिता जी की कविता ने किया है । पुष्पिता जी का रचना-संसार, जितना इस संग्रह की कविताओं में प्रकट हुआ है, लौकिक संबंधों और ऐन्द्रिय प्रतीतियों का संसार है जिसमें व्यक्ति, सशरीर या मनसा कवि के अनुभवों का माध्यम बनता है ।  उनकी कविता