।। अभिलाषा ।।
अभिलाषाएँ
...चुप
तिरती और तैरती हैं ।
कभी
संवेदनाओं की झील में
कभी
विचारों की नदी में
प्रकृति से
ग्रहण करती हैं इच्छाएँ
कभी
सजलता
तरलता
सजगता
अभिलाषाएँ
चुप
रहती हैं
रहती हैं
अपने को शब्द में रूपांतरण से पहले
प्रेम में
प्रेम की तरह
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