तीन कविताएँ
।। अंतरंग साँस ।।
तुम्हारा प्यार
मेरे प्यार का आदर्श है ।
बादलों से बादलों में
क्षितिज की तरह बन गए हैं
हम दोनों ।
प्यार में
समुद्र हुए हम दोनों
क्षितिज हैं सागर के ।
प्यार में
समुद्र को पीता है आकाश
आकाश को जीता है समुद्र
वैसे ही
तुम मुझे
अपने कोमलतम क्षणों में
तुम्हारे प्यार की परिधि
मेरी सीमा और संसार ...।
।। थाप की परतें ।।
तुम्हारे ओझल होते ही
सब कुछ ठहर जाता है
सिर्फ साँसें पार करती हैं समय
निःस्पृह होकर
तुम्हारे साथ के बाद
कोई गीत के बोल
नहीं रुकते हैं ओठों पर ।
तुम्हारी रूमाल की परतों में
हथेली के स्पर्श की परतें हैं
और वहीं से दिखते हो तुम
मुझमें मेरी ओर आते हुए
जैसे उदय होता है सूरज ।
।। अंतःसलिला ।।
प्रेम में
खुलती है
प्रेम की देह ।
देह-भीतर
अन्वेषित होती है
प्रणय अंतःसलिला ।
कमल-पुष्पों की सुगंध से
सराबोर होता है
देह का सुकोमल वन ।
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