।। तप रही आहुति ।।
तुम्हारी ह्रदय-अंजलि में
प्रणय हथेलियाँ
जैसे यज्ञ वेदिका में
तप रही आहुति
समर्पण के लिए ।
तुम्हारी आँखों की
निर्मल गंगा में
आकाशी निलाई के साथ
समाता है चेहरा
मुझे चूमता हुआ ।
तुम्हारी आँखें
पढ़ती हैं मुझे
प्रेम की पहली पुस्तक की तरह ।
शब्दों में पैठती हैं अर्थ की गहरी जड़ें
ऋग्वेद और पुराणों के अर्थसूत्र
खोजती हूँ तुम्हारे शब्दों में ...।
तुम्हारी मुट्ठी में हर बार
मेरी हथेली रख देती है कुछ आँसू
वियोग में
जनमते हैं अक्षय प्रणय शब्द-बीज ।
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