।। सजल ।।
उसने अपनी माँ का बचपन नहीं देखा पर बचपन से देखा है उसने अपनी माँ को । जब से समझने लगी है अपने भीतर का सब कुछ और बाहर का थोड़ा-थोड़ा लगता है उसकी माँ की तरह की औरत आकार लेने लगी है उसके भीतर वैसे ही गीली रहती हैं आँखें वैसे ही छुपाकर रोती है वह । दुःख से ललाये गालों को देख किसी के टोकने पर तपाक बोल पड़ती है वह प्रेम-सुख से बहुत सुंदर हो रही है वह इसीलिए कपोल हैं लाल और आँखें सजल ।