।। सुख का वर्क ।।
मेरा मन तुम्हारे ही मन का हिस्सा है जिस कारण शेष हूँ मैं तुममें अनचाहे, अनजाने हासिल विध्वंस की तपन टूटन की टुकड़ियाँ सूखने की यंत्रणा सीलन और दरारें मीठी, कड़ुआहट और रंगीन जहर सब पर, तुम्हारे 'होने भर के' सुख का वरक लगाकर छुपा लेती हूँ सर्वस्व आँखों की पुतली के कुंड में भरे अपने खून के आँसुओं के गीले डरावनेपन को तुम्हारे नाम में घोल लेती हूँ सघन आत्मीयता के लिए । ('रस गगन गुफा में अझर झरै' शीर्षक कविता संग्रह से)
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