पुष्पिता जी की एक कविता का हस्तलिखित ड्रॉफ्ट

'जंगल जग के मानव प्राणी' शीर्षक कविता यहाँ इस ब्लॉग में पहले प्रस्तुत की जा चुकी है । पुष्पिता जी की इस कविता का एक बड़ा हिस्सा उनकी हस्तलिपि में ही हमें प्राप्त हुआ, तो उसे यहाँ प्रस्तुत करने का लोभ हम संवरण नहीं कर पाए हैं । किसी रचनाकार की रचना को उनकी हस्तलिपि में देखने/पढ़ने का अपना एक पाठकीय सुख तो होता ही है, रचनाकार की रचनात्मक सक्रियता को जानने/पहचानने का एक अवसर भी होता है । दरअसल इसीलिये पुष्पिता जी की इस कविता को आधी-अधूरी होने के बावजूद हम यहाँ दोबारा - लेकिन उनकी हस्तलिपि में दे रहे हैं ।





 

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