'इनिका' कहानी का एक अंश
पुष्पिता अवस्थी जी की कहानियों में जो संसार
है, उस संसार का आशय संबंधों की छाया या प्रकाश में ही खुलता है, अन्यथा
नहीं । संबंधों के प्रति यह उद्दीप्त संवेदनशीलता उन्हें अप्रत्याशित
सूक्ष्मताओं में भले ही ले जाती हो, उनको लेकिन ऐसा चिंतक-कथाकार नहीं
बनाती जिसका चिंतन अलग से हस्तक्षेप करता चलता हो । इसका आभास उनकी 'इनिका'
शीर्षक कहानी के यहाँ प्रस्तुत इस एक अंश में पाया जा सकता है । 'इनिका'
मेधा बुक्स से प्रकाशित उनके कहानी संग्रह 'जन्म' में संगृहीत है ।
'इनिका के पति को अपने ही विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग की एक शिक्षिका से प्रेम था । स्वयं वह समाज-विज्ञान विभाग में अध्यक्ष थे और जल्दी ही अपनी संयुक्त गृहस्थी शुरू करना चाहते थे । इनिका से बगैर उसकी इच्छा जाने उन्होंने तलाक का प्रस्ताव रखा था । साथ ही अपने इतर संबंधों के सघनता की जानकारी भी दी थी ।
'इनिका के पति को अपने ही विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग की एक शिक्षिका से प्रेम था । स्वयं वह समाज-विज्ञान विभाग में अध्यक्ष थे और जल्दी ही अपनी संयुक्त गृहस्थी शुरू करना चाहते थे । इनिका से बगैर उसकी इच्छा जाने उन्होंने तलाक का प्रस्ताव रखा था । साथ ही अपने इतर संबंधों के सघनता की जानकारी भी दी थी ।
यह सब सुनकर इनिका सन्न रह गयी थी । लेकिन जहाँ प्रेम ही न हो
वहाँ संबंधों को बनाये और जिलाये रखने की जिद करना कहाँ तक उचित है । इनिका
के पति ने हमेशा अपनी इच्छाओं की जिद की और उसे अड़कर मनवाते रहे हैं । उसे
अच्छी तरह याद है कि इनिका से प्रेम होने पर उसने ही विवाह की जल्दी मचाई
थी और इनिका को सोचने तक का मौका नहीं दिया था । जब उसे एम्सटर्डम
विश्वविद्यालय में डच भाषा विभाग में इंटरव्यू के लिए जाना था तब भी उसने
उसे नौकरी करने से रोका । एक बच्चे की माँ और घर-गृहस्थी का हवाला देते हुए
आखिर उसे नहीं ही नौकरी करने दी थी और कहा था कि आखिर मैं नौकरी कर ही रहा
हूँ और अच्छी सैलरी मिलती है फिर तुम्हें परेशान होने की क्या जरूरत है ।
इसलिए जब तलाक का प्रस्ताव रखा तो इनिका ने उसे सहज ही स्वीकार कर लिया था ।
लेकिन उसका सदमा दो वर्षों तक झेलती रही थी । उसने सोचा नहीं था कि वह
पचपन की उम्र के बाद अकेली हो जायेगी और उसे अपना जीवन चलाने के लिए नौकरी
करनी पड़ेगी और नौकरी के लिए भी दर-दर भटकना पड़ेगा ।
पियानो के साथ से वह अपना समय काट रही थी । पियानो को ही वह
अपना साथी बनाये हुई थी । यह बात उसकी बेटी जानती भी थी लेकिन फिर भी उसने
पियानो मँगाने की बात कर ही डाली - तिस पर पूरी संवेदनहीनता से यह भी जड़ने
में कोई चूक नहीं की कि उसे भेजने में तुम्हारा कुछ खर्च नहीं लगेगा और
भेजने में कोई परेशानी भी नहीं उठानी पड़ेगी । इनिका को रह-रह कर यह बात साल
रही थी क्या यूरो का खर्च ही सिर्फ खर्च होता है; अरे तुम पर तो … तुम्हें
पालने के लिए उसने अपना पूरा जीवन और सपने खर्च कर दिए हैं । जिस प्यानो
से प्यार के क्षणों की यादें जुड़ी हुई हैं उसे भेजना क्या प्यार के क्षणों
को खर्च करना नहीं है ? क्या इससे बड़ा कोई खर्च हो सकता है जो वह करने जा
रही है ?
उसके पिता जब तलाक देकर घर से चले गए थे तो घर के कमरे में …
बेडरूम में … जिंदगी में … और तो और देह तक में जगह खाली हो चुकी थी । उस
सन्नाटे को उसने किसी तरह से अपने अकेलेपन से ही भरा था । इसके बाद बेटी
ने अपनी पढ़ाई और नौकरी के सिलसिले में घर छोड़ दिया था । वह चाहती तो रुक
सकती थी लेकिन नहीं …। उसने भी अपनी इच्छाओं और अपने निर्णयों को महत्व
दिया ।
बेटी के चले जाने पर न चाहते हुए भी आखिर उसकी जगह भी खाली हुई । वह भी अपनी जरूरत का सब सामान ले गयी जिसमें वह इनिका की जरूरतों
का सामान भी ले गई । वह चुप रही । उसके भीतर की माँ ने उसे चुप रहने दिया ।
ममता ने उसे चुप करा दिया । सारी कटलरी … डिनर सेट … बर्तन, ऐसे ही और भी
सामान थे । इनिका ने अपनी माँ के निधन के बाद उनके टी सेट, कॉफी सेट और
डिनर सेट बहुत सहेजकर और बचा कर इस्तेमाल किए थे कि वह उसके जीवनकाल तक बचे
रहें जिसमें वह अपनी माँ के बचपन के प्यार की स्मृतियाँ जीती थी और
अनुभूति के स्तर पर अपनी माँ के प्यार को पीती थी । पर, हरारा जाते समय
मरियम उसे भी अपने साथ ले गयी क्योंकि वे क्लासिक डिजाइन के सेट थे ।
लेकिन, डायनिंग टेबिल की उसकी उस कुर्सी का क्या करें जो खाली होकर इनिका
की बगल में बैठने वाली बेटी की याद सदा दिलाती रहती है । कुर्सी की जगह
कभी-कभी उसे लगता था जैसे उसकी बेटी ही वहाँ बैठी हो । पियानो को देख कर भी
इनिका अपनी बच्ची के वहाँ बैठे होने की कल्पना से भर उठती थी । उसकी
नन्हीं उँगलियाँ … उसकी मधुर मुस्कराहट के अब वहाँ न होते हुए भी पियानो के
कारण वह उसे महसूस कर लेती थी । और अब मरियम उसके इस अकेलेपन को और अधिक
गहरा तथा खौफनाक बनाने के लिए पियानो भी मँगा रही है । इनिका सुनकर स्तब्ध
थी । वह पियानो भेज दिए जाने पर उससे पैदा होने वाले अकेलेपन से डरी हुई थी
।'
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