।। करती हूँ अंगीकार ।।
सूनी पृथ्वी
जैसे पीती है धूप
अँधेरी शीत के बाद
रिक्त धरती
जैसे सकेलती है धूल-कण
प्राण लेवा प्रलय के बाद
निष्प्राण पृथ्वी
जैसे खींचती है हवाओं से प्राण-तत्व
झुलस भरे तूफान के बाद
तपी धरती
जैसे सोखती है वर्षा से नमी भरी आर्द्रता
भीतर तक कोयलाने के बाद
शोर से बहरी हुई पृथ्वी
जीने के लिए तलाशती है जैसे
एकांत की मिठास
मर्मान्तक आघात के बाद
चीरते उजाले से दग्ध धरती
सन्नाटे की अँधेरी गोद में जैसे
सोती है बेसुध
सन्तप्त होने के बाद
जैसे जीती हो ओस-बूँद को
सूखी धरती
गहरी शुष्कता के बाद
पतझर-ढकी पृथ्वी
जैसे अगोरती है वसंत की आहट
और जीवनदायी कोमल स्पर्श
वैसे ही
बिल्कुल वैसे ही
मैं तुम्हें
देह में प्राण की तरह
करती हूँ अंगीकार ।
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