।। चुपचाप अँधेरा पीने के लिए ।।
तुम्हारी
आवाज के वक्ष से
लगकर रोई है
मेरी सिसकियों की आवाज
अक्सर
विदा लेते समय
अपनी सुबकियाँ
छोड़ आते हैं होंठ
तुम्हारे भीतर
तुम्हारी
हथेली के स्पर्श में
महसूस होता है
दिलासा और विश्वास का
मीठा और गहरा
नया अर्थ
मन गढ़ता है
मौन के लिए
नए शब्द
जिसे
समय-समय पर
सुनती है
मेरे सूने मन की
मुलायम गुहार
अपने थके कन्धों पर
महसूस करती हूँ
तुम्हारे कन्धे
जिस पर
चिड़िया की तरह
अपने सपनों के तिनके
और आँसू की नदी
छोड़ आती हूँ चलते समय
हर बार
(कैसे बहने से बचाओगे
मेरे सपने
मेरे ही आँसुओं की नदी से)
तुम्हारी दोनों
आँखों में
एक साथ है
सुबह का तारा
और सान्ध्य तारा
जिसे
मेरी आँखों की स्तब्ध अंजुलि में
सौंपकर
मुझे विदा करते हो तुम
अकेले
चुपचाप अँधेरा पीने के लिए ।
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