।। हथेली ।।
'अकेलापन' पतझर की तरह
उड़ता फड़फड़ाता है
प्रिय की तस्वीर से
उतरता है स्मृतियों का स्पर्श
देह मुलायम होने लगती है
चाहत की तरह
हथेलियों से
हथेलियों में
छूटती है भावी रेखाओं की छाया
प्रेम की भाषा प्रेम है
सारे भाष्य से परे ।
प्रेम एकात्म अनुभूतियों की
अविस्मरणीय दैहिक पहचान है
देहाकाश में
इंद्रधनुषी इच्छाओं के बीच
बर्फीले पहाड़
बादल की तरह उड़ने लगते हैं
तुमसे कहने की सारी बातें
वियोग में घुल कर
आँसू बन जाती हैं
और पोंछती हैं अकेलेपन के निशान ।
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