।। तुम्हारे जाने के बाद ।।
तुम्हारे जाने के बाद छूट जाता है तुम्हारा जीना मुझमें एक पूरी जीवन्त ऋतु की तरह हम दोनों एक-दूसरे को जी लेते हैं अपनी प्रसुप्त पाँखें खोल प्रणय प्रसूति हेतु तुम्हारे जाने के बाद आँखों के आँचल की खूँट में खिला-महकता वसन्त आस्था के अक्षत की तरह छूट जाता है बचा हुआ बँधा रहता है पवित्र संकल्प-सा तुम्हारे जाने के बाद सम्पूर्ण पृथ्वी पर रची हुई दिखती है प्रणय के वसन्त की कांतिमान रंगत स्मृतियों की जड़ों में रस-रंग घोलती तुम्हारे अधबोले शब्द शब्दों के अंत का सिहरता गुलाबी मौन करता है पृथ्वी पर अपने होने की सृष्टि अवतरित होता है अबुझ …गतिशील नक्षत्र लोक पसरता है प्रणय-उजास का अमिट प्रकाश मन-धरती की दरारों को अपनी रोशनी से भरता तुम्हारे जाने के बाद कर्ण-गठरी कि मन-गठरी में रखे गए तुम्हारे शब्द मेरे प्राण धरोहर मृत को जीवन्त निष्प्राण को प्राणवान अपने शब्दों की जिजीविषा से देते हो प्राण प्रणय की …प्रणय प्रतीक्षा के लिए संजीवनी शक्ति तुम्हारे जाने के ब