।। पीढ़ियों की तरह ।।
कविताएँ
शब्दों में
अवतरित होने से पहले
अवतार लेती हैं
कवि के हृदय और मानस में
कविताएँ
मन की दीवारों के भीतर उकेरती हैं
अपना अंतरंग अभिलेख
कवि के चित्र को देती हैं
संवेदनाओं का कोमलतम स्पर्श
जहाँ से कवि रचता है शब्दों को
नए सिरे से
नए ढंग से
नई रवायत से
नवीनतम तहजीब से
कि उन्हीं शब्दों में आ जाता है नया अर्थ
कि अनुभव होता है कि जैसे
शब्द भी जन्मते हैं नए शब्द
पीढ़ियों की तरह
शब्दों की होती हैं अपनी पीढ़ियाँ
कविताओं के पास होती है शब्दों की अपनी वंशावली
जिनका प्रवर्तक होता है कवि ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें