।। मौन ।।
प्रेम में अपनी आँखों में देखती है वह प्रिय के नयन और अनुभव करती है सुख - गिरा अनयन, नयन बिनु बानी - अपने ही अधरों में अनुभव करती है प्रिय-प्रणय-स्वाद अपने शब्दों की व्यंजना में महसूस करती है प्रिय-प्रणय-अभिव्यंजना … अपनी स्पर्शाकांक्षा में सुनती है प्रिय के शब्द और चुप जाती है सम्प्रेषण के लिए - प्रिय को प्रिय की तरह मौन ही ।