।। आत्मीयता ।।
कोमल शब्द
अजन्मे शिशु की तरह
क्रीड़ा करते हैं
संवेदनाओं के वक्ष भीतर
और भर देते हैं
- सर्वस्व को अनाम ही
आत्मीय शब्द
विश्वसनीय हथेलियों में सकेलकर
चूम लेते हैं
उदास चेहरा
(चुम्बन की निर्मल आर्द्रता में
विलय हो जाते हैं लवणीय अश्रु)
शब्दों की लार से
लिप जाती है
मन की चौखट
नम हो उठता है सर्वांग
चित्त की सिहरनें
नवजात शिशु की
नवतुरिया मुलायमियत सी
अवतरित होती है चेतना की देह में
कि शब्दों के तलवों में
उतर आती है प्रणयी कोमलता
जिसमें चुम्बन से भी अधिक होती है
चुम्बकीय तासीर
संवेदनाओं के पक्ष में
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