।। धड़कनों की स्वर-लहरी ।।
तुम्हारे स्वप्न
पहुँचते हैं
मेरे भीतर वहाँ
जहाँ
बनते हैं शब्द
मेरे ही पंचतत्वों से
देह-माटी के भीतर
दिया सरीखे
हृदय के आले में
धरने के लिए
प्रिय से अधिक
कुम्हार हो तुम
राँधते और गूँथते हो
मेरा सर्वस्व
देह के अदृश्य आँवे में
पकने के लिए
मैं
तुम्हारी तरह ही हूँ - तुममें
तुम्हारे वक्ष के कैनवास को
भरती हूँ - अपने रंगों से
तुम्हारी-उर लेखनी में है
मेरी संवेदनाओं की गीली स्याही
तुम्हारी हस्तलिपि में है
मेरी ही तासीर की नमी
स्मृतियों में
गूँजती-बजती है तुम्हारी शब्द-ध्वनि
नेह-धड़कनों की स्वर लहरी
(हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह 'भोजपत्र' से)
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