।। उसकी होकर ।।


















एकांत में 
अपनी आँखों में 
महसूस करती है    प्रिय की आँखें 

अकेलेपन में अपने 
अनुभव करती है   प्रिय के ओंठों का स्वाद 
उसके शब्दों की स्मृति की होकर 

निज-शब्दों की स्मृति में 
गूँथती है प्रिय की अनकही 
प्रणय अभिव्यंजना 

उसकी स्पर्शाकांक्षा में 
जीती है    प्रिय की प्रणयाभिलाषा 

अकेले ही 
उसकी होकर 
सुनती है 
प्रिय के शब्द 
और चुप हो जाती है 
संप्रेषण के लिए 
प्रिय को 
ऐसे ही 
संबोधित करने 
और 
जीने के लिए ।   

(हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह 'भोजपत्र' से)

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