संदेश

अप्रैल, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

।। देह गढ़ती है ।।

चित्र
प्रेम उजाले की तरह भरता है देह धड़कनें छोड़ती हैं पग-चिन्ह स्मृति के पृष्ठों पर प्रेम चाँद की तरह उतरता है अंतस के सर्वाङ्ग को चाँदनी में बदलते हुए उमंगें उठती हैं लहरों की पैंगें बढ़ाकर शब्द बदल जाते हैं संवेदना में    अनजाने ही पिघलते हैं ढलते हैं लेते हैं आकार सौंदर्य में स्पंदन में कि शब्दों की देह में धड़कने लगते हैं  अर्थ प्राण सरीखे ऐसे में चुम्बन बनाता है देह को चुम्बकीय और पारस देह गढ़ती है अपने ही भीतर स्वर्ण तप्त  अनुभूति कुंड पवित्र सुख के लिए सृष्टि का प्रस्थान बिंदु प्रणय अलौकिक पर अनंत अहर्निश सक्रिय समय की तरह

।। उसकी आँखों में ।।

चित्र
मन की सरहद पर तुम्हारा ही पहरा है मन की धरती सुनती है तुम्हारे शब्द जो उपजते हैं समर्पण से पूरी निष्ठा के साथ जैसे पहरूए तैनात हैं अपने प्राण देकर सरहद के पक्ष में मेरा मन तुम्हारा ही देश है जहाँ से मिलती है हमें शक्ति धरती के पक्ष में खड़े होने की जो संकट में है स्त्री और प्रेम की तरह जब तक दुःख में रहेगी स्त्री कभी नहीं पनप सकेगा प्रेम संपूर्णता में सृष्टि की तरह जब तलक, स्त्री समझी जाती रहेगी सिर्फ देह प्रेम कभी नहीं उझक सकेगा सच्चा निर्मल उसकी आँखों में जहाँ से देखती है वह दुनिया, पुरुष और उसका प्रेम

फुटबॉल में योहन और योहन में फुटबॉल उर्फ़ चमत्कारी खिलाड़ी, खेल गुरू और एक इंसान !

चित्र
[ पुष्पिता जी की एक पहचान फुटबॉल प्रेमी की भी है । फुटबॉल के प्रति उनका लगाव  जुनून की हद तक है, जो उनकी कुछेक कविताओं में भी अभिव्यक्त हुआ है ।  यहाँ प्रस्तुत 'स्वतंत्र आवाज' में प्रकाशित लेख उनके फुटबॉल प्रेम का  एक जीवंत उदाहरण है । यह लेख इस तथ्य को भी हमारे सामने लाता है कि  फुटबॉल जैसे विषय पर लिखते हुए भी पुष्पिता जी का  काव्य-मन बार बार जाहिर होता रहता है ।  इस लेख को पढ़ना उनकी कविता को पढ़ने जैसा सुख प्रदान करता है । ] फुटबॉल की दुनिया के लिए चौबीस मार्च 2016 स्तब्ध कर देने वाला दिन रहा । पचास वर्ष से फुटबॉल खेल और इसकी दुनिया को संचालित करने वाले चमत्कारी खिलाड़ी और खेल गुरू योहन क्राउफ इस दिन नहीं रहे और विश्व का फुटबॉल संसार जैसे निर्धन हो गया है । योहन क्राउफ फुटबॉल की दुनिया के अब भी बादशाह हैं । उन्होंने वैश्विक स्तर पर फुटबॉल की ऐसी विलक्षण पहचान बनाई है कि जब तक दुनिया रहेगी तब तक फुटबॉल रहेगा और जब तक फुटबॉल रहेगा-योहन क्राउफ रहेंगे । योहन क्राउफ के देहावसान के बाद से हज़ारों फुटबॉल प्रेमी उनके बारे में अधिक से अधिक जान लेना चाहते

।। परछाईं खोजती हुई ।।

चित्र
साँसों की आहटों की परछाईं खोजती हुई मेरी छाया साँसों की सुई में पिरोती है तुम्हारे नाम का धागा सीती है ...भरती है ... अपना दो टुकड़े हो चुका समय तुम्हारे साथ एक ठौर की तलाश में बचा है - समय का बेचैन कातर टुकड़ा आँसू की शक्ल में कोरों में सिसकता हुआ - साँसों के साथ तुम्हारे पिघले हुए मन की छवि ठिठकी हुई ठहरी है   मन में तुम्हारे नाम की शब्द बनी हुई जो साँसों से उपजती है साँसों में समाती है जीती और जागती है धड़कनों में सिहरनों में ध्वनियों में

।। लिखावट ।।

चित्र
तुम्हारी लिखावट याद आती है तुम्हारे चेहरे की तरह उसमें तुम तुममें वह दिखायी देती रही है अब तक तुम्हारे नहीं आने पर पत्र आते थे तुम्हारे प्रतिनिधि होकर पूरते थे मुझे स्निग्ध अपनेपन से आँखें पोंछती रही हैं आँसू शब्दों की हथेली से तुम्हें नहीं मालूम तुम्हारी लिखावट उतरती रही है मुझमें जैसे           आँखों में           उतरते हुए तुम्हारा प्रणय           अवतार लेता रहा है मुझमें

।। प्रिय में स्वप्न ।।

चित्र
स्वप्न में प्रिय प्रिय में स्वप्न पलकों के पालने में झुलाती है  प्रेम और प्रेम में झूलती है   स्वयं प्रेम में प्रिय प्रिय में स्वप्न स्मृतियों में शब्द शब्दों में सुख सुख में आनंद आनंद में आत्मा को झुलाती है पलकों के पालने में देह से विदेह होने के लिए स्वप्न में प्रिय प्रिय में स्वप्न

।। स्पर्श-ताप ।।

चित्र
सजल स्नेह आत्मा का मुखर शब्द है अंतःकरण की भाषा का सर्वांग प्रणय का अनोखा भाष्य           जादुई अर्थ-कोष प्रिय का हर शब्द प्रणय की वंशावली है कि नश्वर देह में अनश्वर हो जाती है  प्रणय-देह अहर्निश   प्राण   संगिनी अनाज का स्वाद जैसे   जानती है देह वैसे ही चित्त का स्वाद और सुख मन की स्पर्शानुभूति की भीज से           सीज उठती है आत्मा की देह           अवतार लेती है नवातुर प्रणय देह           देह-भीतर           मानव-देह से इतर          अंतरिक्षी पावन स्पर्श-स्पंदन में होता है जहाँ ईश्वरीय जादू कि सम्पूर्ण देह विशिष्ट सृष्टि लगने लगती है           प्रणय की आकाश-गंगा           उतर आती है   चेतना की गंगोत्री में           मन-देह को गांगेय बनाने के लिए