।। सचेतन हूक ।।

प्रेम
देह की भूख से अधिक
चित्त की सचेतन हूक है

संवेदना के गर्भ से
जन्म लेता है    प्रणय
अनुभूतियों के स्पर्श से
पलता है    प्रणय

कि     मन देह
तैरने लगती है
अपने ही जाये प्रणय-सरोवर में
खिलने लगते हैं    तृप्ति-कमल
देह की ज्ञानेन्द्रियों में

राग से पूर्ण हो उठती है
प्राणों की जिजीविषा
एक अलौकिक तृप्ति से भरकर
लौकिक जीवन जीते हुए

(नए प्रकाशित कविता संग्रह 'गर्भ की उतरन' से)

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