डॉक्टर रेवती रमण के मूल्यांकन के अनुसार पुष्पिता अवस्थी का 'भोजपत्र' शकुंतला का कमल-पत्र है
पुष्पिता अवस्थी ने पिछले दिनों ही प्रकाशित अपना एक कविता संग्रह 'भोजपत्र'
वरिष्ठ कवि शमशेर बहादुर सिंह की स्मृति को समर्पित किया है ।
समर्पण-संदेश में उन्होंने शमशेर को
'प्रेम की अंतर्पर्तों के चितेरे'
के रूप में रेखांकित किया है ।
अंतिका प्रकाशन द्धारा प्रकाशित 'भोजपत्र' के
समर्पण-संदेश में पुष्पिता ने अपनी एक कविता की
कुछेक पंक्तियों को भी प्रस्तुत किया है, जो इस प्रकार हैं :
वरिष्ठ कवि शमशेर बहादुर सिंह की स्मृति को समर्पित किया है ।
समर्पण-संदेश में उन्होंने शमशेर को
'प्रेम की अंतर्पर्तों के चितेरे'
के रूप में रेखांकित किया है ।
अंतिका प्रकाशन द्धारा प्रकाशित 'भोजपत्र' के
समर्पण-संदेश में पुष्पिता ने अपनी एक कविता की
कुछेक पंक्तियों को भी प्रस्तुत किया है, जो इस प्रकार हैं :
'प्रणय-देह के भोजपत्र हैं
मन
मानस
मानस
आत्मा
देह
सृष्टि और ब्रह्मांड
'भोजपत्र' शीर्षक कविता संग्रह में 174 पृष्ठों में पुष्पिता की 127 कविताएँ
प्रकाशित हैं । दस पृष्ठों में डॉक्टर रेवती रमण ने इन कविताओं का
वस्तुपरक मूल्यांकन किया है । संकलन का आवरण चित्र
शशिकला देवी की रचना है । फ्लैप पर डॉक्टर रेवती रमण के
'अनुभूति का रजकण ही प्रणय है' शीर्षक मूल्यांकन आलेख का
एक महत्त्वपूर्ण अंश है, जो इस प्रकार है :
'भोजपत्र'
की अधिसंख्य कविताएँ प्रेम करने और पाने की प्रक्रिया से उपलब्ध आनंद का
इजहार है । कवयित्री अपने पाठकों को आश्वस्त कर पाती हैं कि जो लिखा है,
महसूस करके लिखा है । प्रेम घटित हुआ है तो अनुभूति विलक्षण हुई है । औरों को भी होती होगी, पर उनके वश में भाषा नहीं होती ।
सच तो यह भी है कि एक स्त्री चाहे जिस सामाजिक संस्तर की हो, पुरुष की
हक़ीक़त जानती है; जबकि एक पुरुष के लिए सभ्यता के आरंभ से ही वह रहस्य बनी
रही है । भारतीयता के विशेष संदर्भ में उसका सौंदर्य लाज भरा सौंदर्य रहा
है । कई बार तो उसका शील ही सौंदर्य होता है । प्रसंग यहाँ प्रणय का है -
प्रेम, स्नेह, प्यार, प्रीत उसके भिन्न नाम हैं । पुष्पिता की कविता
प्रेम-धुन है, प्रणय-मणि है । उसकी लिपि 'हृदय लिपि' है, पर विचार बुद्धि
से रहित नहीं । यह बुद्धि-वैभव से संपन्न स्त्री के चैतन्य का उल्लास है ।
इसमें हद बेहद का भाव-भेद निराकार हुआ है । बल्कि, कहना चाहिए कि पुष्पिता जीवन और जिजीविषा के लिए कोई हद मानती ही नहीं हैं ।
सच्ची और संपूर्ण प्रेमानुभूति आदमी को जैसे सूफी बना देती है, पुष्पिता
प्रेम को 'बेगमपुरा' की अवधारणा में ढाल देती हैं । प्रेम में हर तरह का
अभाव स्व-भाव बन गया है । प्रेमानुभूति का ऐसा प्रशस्त प्रांगण उन्होंने
अपने अनुसंधान और यायावरी से संभव किया है । संप्रति, मैं ऐसी दूसरी
कवयित्री को नहीं जानता जो इतने सरल, सहज ढंग से काया और मन को उजागर कर
सके । अभिव्यक्ति में कहीं स्थूल का समावेश नहीं । उन्होंने जातीय कविता
के गहन अध्ययन से बिंबों और प्रतीकों के प्रयोग में महारत हासिल की है ।
कोई चाहे तो मीरा, महादेवी, आन्दाल और ललद्यद को प्रसंगवश, याद कर सकता है । पुष्पिता का 'भोजपत्र' शकुंतला का कमल-पत्र है । उसमें वही कोमलता और दीप्ति है जो कालिदास का वाग्वैभव है । लेकिन इन कविताओं को पढ़ते हुए हमें चण्डीदास याद आते हैं, जयदेव और विद्यापति भी ।
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