चार छोटी कविताएँ
।। बहुत चुपचाप ।।
प्रेमानुभूति का सुख
जीवन-सुख
नवस्वप्न का
साक्षात-सदेह जन्म
अपने ही भीतर
प्रिय के विमुख होने का विषाद
जैसे मृत्यु से साक्षात्कार
अपने ही भीतर
विलखती है अपनी आत्मा
पूरी देह
जीती है करुण-क्रंदन
बहुत चुपचाप
।। प्रिया ।।
अधरों की विह्वल विकलता में
अपनी ही उँगलियों से
मसलती रहती है
ओंठों की दारुण-तड़प
फिर भी
ओंठ सिसकते रहते हैं
साँस की तरह
अपने प्रिय के बिछोह में
।। प्रेमधुन ।।
तुम्हारी ध्वनि में
सुनाई देती है
अपनी आत्मा की प्रतिध्वनि
तुम्हारे
शब्दों की बरसात में
भीगती है आत्मा
आत्मा जनित
प्रेम में होती है
प्रेम की पवित्रता
और चिरंतरता ...
... बजती है प्रेम धुन
रामधुन सरीखी
लीन हो जाने के लिए
।। ताप ।।
धूप में
सूर्य
हममें
प्रेम में
प्रिय
तितलियाँ
भरती हैं रंग
आँखों में
और आँखें आँजती हैं
प्रेम
('भोजपत्र' शीर्षक कविता संग्रह से)
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