।। पोर-पोर में ।।
चित्त
चुपचाप ही
स्मृति-पृष्ठों पर
लिखता है अभिलेख
मौन ही स्पंदन
धड़कन
बँधाव
और रचाव की तिथियाँ
चुपचाप भोगता है प्रेम
प्रेम की आँखों का प्रतिबिम्ब
अपनी आँखों में
मुस्कुराहट का सुख
अधरों में
स्पर्श का अमृत
अपनी हथेलियों में
और
प्रिय का प्रियतम अहसास
पोर-पोर में
कि जैसे
आत्म-सुख से आह्लादित हो
देहात्मा भी
('भोजपत्र' शीर्षक कविता संग्रह से)
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