पुष्पिता की आलोचना पुस्तक

'आधुनिक हिंदी काव्यालोचना के सौ वर्ष' पुष्पिता अवस्थी की महत्त्वपूर्ण आलोचना पुस्तक है, जिसमें जैसा कि शीर्षक से ही आभास मिलता है कि - हिंदी काव्यालोचना के सौ वर्षों की गहन पड़ताल की गई है । पुष्पिता इस पुस्तक में आधुनिक हिंदी कविता और काव्यालोचना का नया सौंदर्यशास्त्र सृजन करने के क्रम में समीक्षा की भाषा के अलावा कई बुनियादी सवालों से भी दो-चार हुई हैं : यथा, कविता अपनी रचना में ही कैसे अपना नया काव्यशास्त्र रचती-रचाती है ? कविता और काव्यालोचना का सौंदर्य कैसे बनता है ? जीवनानुभवों और मनस्तत्वों की भाषा में कैसी बुनावट है ? क्या कारण है कि तुलसी-जायसी के व्याख्याता आचार्य शुक्ल कबीर से सहानुभूति/सह-अनुभूति नहीं महसूस करते ? आदि-इत्यादि ।
उल्लेखनीय है कि काव्यालोचना के सौंदर्यशास्त्र और भाषा के वर्तमान परिदृश्य को उर्वर बनाने में एक साथ कम से कम तीन पीढ़ियाँ सक्रिय दिखाई देती हैं, जिनमें विभिन्न तरह की प्रेरणाएँ और प्रक्रियाएँ देखी जा सकती हैं । काव्य-आलोचना का अद्यतन परिदृश्य विभिन्न दृष्टियों के ताने-बाने से निर्मित है, जिसे पुष्पिता ने अपनी इस आलोचना पुस्तक में विस्तार से रेखांकित और विश्लेषित किया है । पुष्पिता ने अपनी इस पुस्तक के विषय को आठ खण्डों में विभक्त किया है, जिनके शीर्षक हैं : हिंदी आलोचना - पूर्वाभास; भारतेंदु-युग की हिंदी समीक्षा, द्धिवेदी युगीन हिंदी समीक्षा निर्माण और विकास की प्रक्रिया; शुक्ल युग - हिंदी आलोचना का प्रकर्ष; स्वच्छन्दतावादी काव्यालोचना में भाषा-स्वरूप; मार्क्सवाद से प्रेरित प्रगतिशील आलोचना-दृष्टि; आधुनिकतावादी काव्यालोचक; और अद्यतन काव्य समीक्षा - एक परिदृश्य; आदि-इत्यादि ।
प्रतिष्ठित प्रकाशक राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड से प्रकाशित इस आलोचना पुस्तक को पुष्पिता ने अपनी रिश्तेदार-सहेली पद्मजा को समर्पित किया है ।

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