।। प्रेम का पर्याय ।।
नदी जानती है चाँद का सुख जब सारी रात चाँद खेलता है उसके वक्ष से कोख तक कि नदी की मछलियों को बनाता है रुपहला चाँद और नदी के अभिसार का अभिलेख हैं रुपहली मछलियाँ कि वे नदी की देह में खोजती हैं चाँद को जो घुल गया है प्रेम का पर्याय बनकर जैसे तुम मुझमें नदी के बहाव में है नदी के प्यार की धुन ध्वनि से शब्द बनाने के लिए चाँदनी बनती है चाँद की दूतिका चाँद सीखता है नदी से प्रेम की भाषा चाँदनी नदी में घुलकर रुपहली स्याही होकर तरंगों में लिखती है प्यार का भाष्य तुम्हारी साँसों से खींचती हूँ प्रेम की प्राणशक्ति अपने शब्दों की चेतना के लिए कि वे जब खुले और खोलें अपना मौन तो रचें प्रेम की अमिट प्राकृतिक भाषा ('भोजपत्र' शीर्षक कविता संग्रह से)