।। साक्षात्कार ।।
शब्दों के पास
होती है, आत्म चेतना
चेतना
शब्दों की आत्मा है
स्पर्श करती है सचेतनता के साथ
सजग आत्मा को
खोल देती है देह-बंध
तोड़ देती है मोह-व्यामोह
शब्द
मुक्त करा लाते हैं आत्मा को
देह से
कि
आत्मा सुन सके
आत्मा को
आत्मा देख सके
आत्मा को
आत्मा स्पर्श कर सके
आत्मा को
शब्दों से
और लीन हो सके आत्मा में
मुक्ति के लिए
('भोजपत्र' शीर्षक कविता संग्रह से)
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