।। पक्ष में ।।
मैं
तुम्हारी तरह हूँ
तुममें
तुम्हारे वक्ष के कैनवास को
भरती हूँ अपने रंगों से
तुम्हारी लिखावट में है
मेरी तासीर की नमी
स्मृतियों में
सुनायी देती है तुम्हारी आवाज़
धड़कनों की स्वर लहरी
धड़कनों की स्वर लहरी
तुम्हारी आवाज़
तुम्हारी लिखावट
तुम्हारे शब्द
जो किसी भी धर्म ग्रंथ से नहीं हैं
फिर भी
आशीषते हैं हर पल
आशीषते हैं हर पल
प्रणय को
प्रकृति के पक्ष में
पृथ्वी के लिए
('भोजपत्र' शीर्षक कविता संग्रह से)
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