।। वियोग सुख ।।

तुमसे
छुपाकर जीती हूँ
तुम्हारा वियोग

आवाज में ही
दबा ले जाती हूँ रुलाई
लिखने से पहले
शब्दों से खींच लेती हूँ
बिछोह की पीड़ा

तुम तक
पहुँचने वाले
सूर्य और चंद्र में
चमकने देती हूँ
चूमा हुआ प्रेम

बिछोह के दर्द को
घोलती हूँ
रक्त भीतर
कि आँख में
जन्म न लें आँसू

ओठों की तड़प को
अपनी ही
उँगलियों से
मसलती रहती हूँ
बेबसी के दारुण क्षणों में
फिर भी
ओंठ सिसकते ही रहते हैं
साँस की तरह
अपने प्रेम के बिछोह में

('रस गगन गुफा में अझर झरै' शीर्षक कविता संग्रह  से)

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