।। रेत की नदी ।।
उदास मन की जड़ें
रेत की नदी में हैं
प्यासी और प्यासी
तुम्हारे सुख के अलावा
कोई खुशी नहीं हँसा पाती है उदासी को
अपनी ही आँखें नहीं सोख पाती हैं
आँसुओं के चिह्न
किसी ईश्वरीय-मौन में
नहाकर उदासी
धो लेना चाहती है
अपना करुण चेहरा
तुम्हारी अनुपस्थिति में
चुपचाप
कहाँ से उग आते हैं
नागफनी के काँटे
चेहरे में
शब्दों में
साँसों में
प्रणय
उतार फेंको उदासी का
समुद्री मछुआरी जाल
जिसमें
भगवान के प्यार के आनंद की
चमक भी घुटन में दब जाती है ।
('रस गगन गुफा में अझर झरै' शीर्षक कविता संग्रह से)
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