सूरीनाम में रहने वाले प्रवासियों की संघर्ष की गाथा है 'छिन्नमूल'
हिंदी पत्रिका आउटलुक में पुष्पिता अवस्थी के उपन्यास
'छिन्नमूल' की समीक्षा
'प्रवासी जन-जीवन की गाथा' शीर्षक कॉलम के तहत
प्रकाशित हुई है,
जिसे प्रख्यात समीक्षक ओम निश्चल ने लिखा है ।
उसे हम यहाँ साभार प्रस्तुत कर रहे हैं ।
उक्त समीक्षा को यहाँ हू-ब-हू पढ़ा जा सकता है ।
प्रवासी भारतीय लेखकों में पुष्पिता अवस्थी का नाम प्रतिष्ठा से
लिया जाता है। पहली बार किसी प्रवासी भारतीय लेखिका ने सूरीनाम और
कैरेबियाई देश को उपन्यास का विषय बनाया है और गिरमिटिया परंपरा में
सूरीनाम की धरती पर आए मेहनतकश पूर्वी उत्तर प्रदेश के मजदूरों यानी
भारतवंशियों की संघर्षगाथा को शब्द दिए हैं । यह उन लोगों की कहानी है जो
अपनी जड़ों से कटे हैं, जिन्होंने पराए देश में अपनी संस्कृति, अपने धर्म
और विश्वास के बीज बोए और पराई धरती को खून-पसीने से सींच कर पल्लवित
किया । सूरीनाम पर इससे पहले डच भाषा में उपन्यास लिखे गए पर वे प्राय:
नीग्रो समाज के संघर्ष को उजागर करते हैं । सरनामी भाषा में भी कुछ उपन्यास
लिखे गए पर वे सर्वथा डच सांस्कृतिक आंखों से देखे गए वृत्तांत हैं । यह
उपन्यास एक तरफ हिंदुस्तानी संस्कृति के दोगले चेहरों की असलियत अनावृत
करता है तो दूसरी तरफ एक सौ साठ बरस के अंतराल में यहां पनपी सूरीनाम
हिंदुस्तानी संस्कृति को भी उद्घाटित करता है । अतीत में जब पाल वाले
जहाजों से हिंदुस्तानी यहां लाए गए थे तो उन पर गोरे डच कोड़े बरसाते थे,
आज यहां उन्हीं हिंदुस्तानियों की आबादी 42 प्रतिशत है । सब कुछ छोड़ कर
आए भारतवंशियों का अब हिंदुस्तान से संपर्क लगभग कट गया है । वे लौटना भी
चाहें तो असंभव है । सूरीनाम की भारतवंशी संस्कृति और सरनामी हिंदी से
सुपरिचित, भारतवंशियों के रहन-सहन, जीविका, पारिवारिक संबंधों को गहरे जीने
एवं महसूस करने वाली पुष्पिता अवस्थी ने न केवल सूरीनाम के भौगोलिक
परिवेश, जन-जीवन और पर्यावरण को पूरी समझ के साथ उकेरा है बल्कि
भारतवंशियों के हालात और नीग्रो की लुटेरी प्रवृत्तियों तक को भी बहुत
गहराई से विश्लेषित किया है ।'छिन्नमूल' की समीक्षा
'प्रवासी जन-जीवन की गाथा' शीर्षक कॉलम के तहत
प्रकाशित हुई है,
जिसे प्रख्यात समीक्षक ओम निश्चल ने लिखा है ।
उसे हम यहाँ साभार प्रस्तुत कर रहे हैं ।
उक्त समीक्षा को यहाँ हू-ब-हू पढ़ा जा सकता है ।
मुख्य किरदार ललिता सूरीनाम में पार्टी में देर रात अकेले होने और बारिश के जबर्दस्त आसार को देखते हुए घर पहुंचने की विकलता और सूरीनाम के लुटेरे परिवेश को देखते हुए भय से ग्रस्त है । ललिता का घर दूर है लेकिन उसे वहीं रहने वाला रोहित जो एक व्यवसायी है, चुटकियों में भयमुक्त कर देता है । कार में लिफ्ट देने के साथ ही अपनी सज्जनता का परिचय देने वाले रोहित के प्रति धीरे-धीरे ललिता में लगाव पैदा होता है । इस बीच वह एक ऑपरेशन के लिए अस्पताल में दाखिल होती है । इस दौरान रोहित न सिर्फ देखभाल करता है बल्कि उसे अस्पताल से अपने घर ले आता है । रोहित मूलत: भारतवंशियों की संतान है जो कभी दो-तीन पीढ़ियों पहले सूरीनाम आए थे और अब उनका हालैंड में कारोबार है । दो दिल कैसे उत्तरोत्तर एक होते जाते हैं, परिस्थितियां कैसे खूबसूरती से इसे संभव करती हैं, यह लेखिका ने बताया है ।
कालांतर में, रोहित का अपने पुरखों की याद को संरक्षित करने के लिए सूरीनाम में पुरखों की जमीन पर स्कूल और मंदिर आदि के निर्माण में लगना उसका और ललिता का साझा स्वप्न बन जाता है । इसी बहाने ललिता सूरीनामी जीवन, भारतवंशियों की सांस्कृतिक परंपराओं, पारस्परिक रिश्तों, संबंधों में आते हुए पश्चिमी आधुनिकता के प्रभावों तथा अपने को न बदलने की एक जिद्दी धुन लिए सूरीनामी भारतवंशियों को अपने विवेक और अध्ययन में गहरे पोसती हैं । ऊंची तालीम और कारोबार के लिए सूरीनामियों की पहली पसंदीदा जगह हालैंड है । इसलिए हालैंड के डच और भारतीय समाज पर भी तमाम टिप्पणियां यहां संवादों और किस्सागोई में समेटी गई हैं । हालैंड के भारतीय और डच भाषी समाज में सेक्स और यौनिकता के प्रति खुलेपन को भी बेबाकी से चित्रित किया गया है । जहां बिना विवाह किए रहने की छूट है तथा समाज में मर्दवादी दृष्टि का बोलबाला है ।
किस्सागोई का केंद्र यों तो सूरीनाम और हालैंड ही है पर इसके नैरेटिव में कैरेबियाई देशों के हवाले भी आए हैं । जैसे लेखिका कहती है, 'सूरीनाम की धरती ही नहीं, ब्रिटिश गयाना, फ्रेंच गयाना, वेनेजुएला, पेरु, चिली और ब्राजील आदि के जंगल या यूं कहें पूरे दक्षिण अमेरिका के जंगलों को देखकर ऐसा लगता है कि पृथ्वी का यह हिस्सा आज भी कुंआरी कन्या की तरह है । जंगल आज भी मौलिक रूप में जीवित हैं जिसे भोगवादी आंखों ने अभी तक स्पर्श नहीं किया है । यूं मानो इसे अभी सिगरेट की तरह सुलगाकर पिया नहीं है ।' इस तरह यह उपन्यास केवल ललिता और रोहित के प्रेम और दाम्पत्य की दास्तान ही नहीं, नीदरलैंड और सूरीनामी समाज, संस्कृति और भारतवंशियों के प्रति सूरीनामी प्रशासन के रवैए का भी संजीदा आख्यान बन गया है जिसे पुष्पिता अवस्थी ने अपने प्रवासी भारतीय मन-मिजाज के अनुरूप भाषायी आकर्षणों के साथ लिखा है । वृत्तांतों में रिपोर्ताज की महक है पर किस्सागोई आहत नहीं होती ।
इस उपन्यास के माध्यम से सूरीनाम के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू की जानकारी मिलती है। ओम निश्छल जे द्वारा लिखी यह समीक्षा पुस्तक को पढ़ने के लिए पाठकों को आकर्षित करती है। शोध कार्य और शोधार्थियों दोनों के लिए यह पुस्तक और आलोचना बहुत ही ज्ञानवर्द्धक और महत्वपूर्ण है। ढ़ेर सारा मुबारकबाद
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